Friday, March 6, 2009

तन्हाई....once more

यूँही मन कुछ व्यथित सा हो जाता है

जाने कैसे-कैसे सपनो में खो जाता है

खामोश से बैठे अपनों में....

कभी अनजान सा बन जाता है

कुछ तन्हा सा....

तो कुछ सहम सा जाता है

जब भी ये एकांकी का मौसम आता है

ना जाने क्यों ह्रदय कुछ द्रवित!!!!

तो कभी अपने आप में....

एक प्रश्न सा नज़र आता है...

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