कभी चुपचाप हंसते है
कभी चुपचाप रोते है..
अजब सी इन् निगाहों से
दीवारों से कुछ कहते है,
अश्रु के उन् धारो से..
कभी खुद को समेटते है
पल में कदम बढांते है..
खुद उन्हें ही रोक लेते है,
ना जाने क्यों...
यूँही खामोश रहते है
की अब तो जागते हुए भी
अक्सर सपनो में खोये रहते है..??
Saturday, February 14, 2009
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