Friday, March 6, 2009

तन्हाई....once more

यूँही मन कुछ व्यथित सा हो जाता है

जाने कैसे-कैसे सपनो में खो जाता है

खामोश से बैठे अपनों में....

कभी अनजान सा बन जाता है

कुछ तन्हा सा....

तो कुछ सहम सा जाता है

जब भी ये एकांकी का मौसम आता है

ना जाने क्यों ह्रदय कुछ द्रवित!!!!

तो कभी अपने आप में....

एक प्रश्न सा नज़र आता है...

Friday, February 27, 2009

अक्सर यूँही ख्यालो में....

अक्सर यूँही ख्यालो में
तुम्हे हम याद करते है
ना कहते है कभी कुछ

लिए जज्बात फिरते है....

कभी इन् सूनी आँखों में
आस के दीप जलाते है
पलके जब बंद करते है
सामने तुमको पाते है....

क्या पुछु....?

कुछ मनमोहक दृश्य सजाकर

प्रेम रुपी ज्योति जलाकर

अंतर्मन में तुम्हे बिठाकर

प्रश्नों के अम्बार लगाकर

आज तुम्हे आइना बनाकर

सोचता हूँ क्या पुछु....?

बस... अपलक....

यूँही तुम्हे देखता रहू....

Sunday, February 15, 2009

धुंध

जिंदगी कम रोशनी में
धुंआ हो गयी है....
आंसुओ ने भी..
ओंस में घुलकर
अपनी पहचान खो दी है,

कंहा ढूंढे हम
अपना वजूद....
जब अजनबी सी
परछाईयों ने ही
इसे अपनी पहचान दे दी है..

Saturday, February 14, 2009

तन्हाई....

कभी चुपचाप हंसते है
कभी चुपचाप रोते है..
अजब सी इन् निगाहों से
दीवारों से कुछ कहते है,

अश्रु के उन् धारो से..
कभी खुद को समेटते है
पल में कदम बढांते है..

खुद उन्हें ही रोक लेते है,

ना जाने क्यों...
यूँही खामोश रहते है
की अब तो जागते हुए भी
अक्सर सपनो में खोये रहते है..??